जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी पर इसके प्रभाव: एक विस्तृत ब्लॉग
2024 का वर्ष वैश्विक
तापमान, समुद्र स्तर तथा
चर मौसम की तीव्रता के दृष्टिकोण से चरम पर पहुंच गया है। यह परिवर्तन न केवल
पारिस्थितिक तंत्रों को प्रभावित कर रहा है बल्कि मानव स्वास्थ्य, कृषि उत्पादकता, जल सुरक्षा एवं आर्थिक स्थिरता को भी गंभीर रूप
से बाधित कर रहा है।
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Climate Change: AI Generated image |
जलवायु परिवर्तन
से आशय है लंबी अवधि में मौसमी दशाओं में होने वाले निरंतर बदलाव, जो प्राकृतिक चक्रों के साथ-साथ मानवीय
गतिविधियों (जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना, वनों की कटाई) के कारण ग्रीनहाउस गैसों—CO₂, CH₄,
N₂O इत्यादि—के वायुमंडलीय
स्तर में वृद्धि से तीव्र हुए हैं।
2. वैश्विक तापमान
में वृद्धि
- वर्ष 2024 में पृथ्वी का औसत सतही तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर (1850–1900) की तुलना में लगभग 1.47°C बढ़ गया, जिससे यह अब तक का सबसे गर्म वर्ष बना।
- 2015–2024 की अवधि तापमान के दस उच्चतम वर्षों में शामिल है, जो मानवजनित कारकों से प्रेरित दीर्घकालिक गर्मी की दिशा को उजागर करता है।
3. समुद्र स्तर में वृद्धि
- 2024 में समुद्र का स्तर 0.59 सेमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ा, जो पूर्वानुमानित 0.43 सेमी/वर्ष से अधिक है।
- 1993 से अब तक समुद्र स्तर में कुल बढ़ोतरी लगभग 10 सेमी हो चुकी है, और दोगुनी गति से बढ़ने की प्रवृत्ति जारी है।
4. हिम और बर्फ की चादरों का क्षरण
- आर्कटिक क्षेत्र में समुद्री बर्फ का विस्तार दशकीय दर से 12.2% घट रहा है, जिससे ऊष्मा अवशोषण और अत्यधिक तापमान को बढ़ावा मिल रहा है।
- हिमालय की ग्लेशियरीय बर्फ हर दशक लगभग 14.9 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रही है, जिससे दक्षिण एशिया की प्रमुख नदियाँ—गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु—खतरे में हैं।
5. जैव विविधता और पारिस्थितिक संकट
- 1970 से अब तक वन्यजीव आबादी में औसतन 69% की गिरावट आई है; 1.5-2.5°C तापमान वृद्धि पर 20–30% प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच सकती हैं।
- कोरल रीफ्स एवं कछुआ जैसे संवेदनशील प्रजातियाँ समुद्री अम्लीकरण एवं प्रवाल मृत्तिका ताप वृद्धि से बुरी तरह प्रभावित हैं।
6. कृषि, जल सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा
- वर्षा पैटर्न में
अनिश्चितता से फसल चक्र प्रभावित हुए हैं। भारत में गेहूं की उपज में 2050 तक 19.3% और धान में 20% तक की कमी होने का अनुमान है।
- हिमालय से मिलने
वाला जल स्रोत कम होने से सिंचाई संकट और जलसंघर्ष बढ़ेंगे।
7. मानव स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
- हीट एक्सट्रीम एवं लू से मृत्युदर बढ़ रही है। वर्ष 2024 में भारत का वार्षिक औसत तापमान 25.75°C दर्ज हुआ, जो दीर्घकालिक औसत से 0.65°C अधिक था।
- चरम मौसमी घटनाओं (बाढ़, सूखा, चक्रवात) ने पिछले दशक में 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक आर्थिक क्षति पहुँचाई।
8. समाधान और अनुकूलन
- नवीकरणीय ऊर्जा का प्रवर्तन: वर्ष 2024 में सौर एवं पवन क्षमताओं में क्रमशः 29% एवं 11% की वृद्धि दर्ज हुई, जिससे वैश्विक निवेश 2.1 ट्रिलियन डॉलर पहुँचा।
- कार्बन कैप्चर व स्टोरेज (CCS): जीवाश्म ईंधन संयंत्रों में CCS तकनीक अपनाकर उत्सर्जन कम किया जा सकता है।
- प्रकृति आधारित समाधान: वनीकरण व मनोबल सहेजने से कार्बन अवशोषण के साथ-साथ पारिस्थितिक संतुलन भी सुधरेगा।
9. निष्कर्ष
वैज्ञानिक चेतावनियाँ स्पष्ट हैं: वैश्विक तापमान, समुद्र स्तर व चरम मौसमी घटनाओं की तीव्रता बढ़ती ही जा रही है। अगले दशक में यदि उत्सर्जन को 2019 के स्तर से 43% तक घटा नहीं गया तो 1.5°C लक्ष्य अकल्पनीय हो जाएगा। उत्सर्जन में कटौती, नवीकरणीय ऊर्जा का प्रवर्तन एवं प्रकृति आधारित उपाय ही मानवता के सामने खड़ी इस चुनौती का सामना करने की कुंजी हैं।
Sources of this blog:
1 आईपीसीसी AR6
संश्लेषण रिपोर्ट1
2 NASA रिपोर्ट: 2024 सर्वाधिक
गर्म वर्ष2
4 NASA समुद्र स्तर विश्लेषण4
5 हिमालय एवं आर्कटिक बर्फ की हानि5
6 जैव विविधता संकट पर IPCC6
7 भारत में कृषि उपज पर प्रभाव7
9 आर्थिक लागत अध्ययन9
10 नवीकरणीय ऊर्जा निवेश10
11 प्रकृति आधारित समाधान रिपोर्ट11
12 Paris Agreement लक्ष्य व उत्सर्जन कटौती